चोटी की पकड़–111

मुन्ना आज्ञा मिलने पर बाहर निकली। कहारों को बड़ी पालकी ले चलने के लिए कहा, खास रानीजीवाली।


 कहारों ने तैयारी की। मुन्ना साथ पुरानी कोठी की तरफ चली। कहारों को अचंभा हुआ। मगर चलते हुए सोचते रहे, रानी साहिबा वहाँ कहाँ मरीं। 

तालाब की बगल पालकी रखाकर मुन्ना ने कहारों को हट जाने के लिए कहा। कहारों ने वैसा ही किया। दिल से उमड़ रहे थे जैसे कोई बात पकड़ी हो, कलंक पकड़ा हो। 

प्रभाकर तालाब के घाट पर बैठे थे। मुन्ना गई, और पालकी चलने के लिए रखी है, कहा। प्रभाकर संध्या की सुगंध के भीतर से चले। मुन्ना कुछ देर फिर उनकी चाल देखती रही।


सैंतीस

आमों की राह से होते हुए गुलाबजामुन के बाग के भीतर से मुन्ना पालकी ले चली। कई दफे आते-जाते थक चुकी थी। 

उमंग थी। एक नयी दुनिया पर पैर रखना है। लोगों को देखने और पहचानने की नयी आँख मिल रही है।

खिड़की पर कहारों और पहरेदार को हटाकर दरवाजा खोलकर प्रभाकर को ले गई। पंखे से समझ गई, रानी साहिबा उसी बैठके में हैं। बड़ेवाले में ले गई।

प्रभाकर ने देखा, एजाजवाले बँगले से यह आलीशान और खुशनुमा है। बड़ी बैठक है। छप्परखाट बड़ी, मेजें बड़ी। 

आईने बड़े, फूलदानियाँ बड़ी। दरवाजे बड़े। झूलें बड़ी। सनलाइट की बत्तियाँ भी बड़ी। अधिक प्रकाश, अधिक स्निग्धता, अधिक ऐश्वर्य, अधिक सजावट। 

संगमरमर का फर्श, खुला हुआ, हिंदूपन के चिह्न। दीवारों और छतों पर अत्यंत सुंदर चित्रकारी।

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